• इस दौर में याद आती है जिमी कार्टर की मूल्यगत राजनीति

    पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने 18 फरवरी, 2023 को घोषणा की कि वे अस्पताल में भर्ती होने के बजाय अपने घर पर आखिरी सांस लेंगे

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    - वाप्पला बालचंद्रन

    1991 में सीनेट की विदेश संबंध समिति ने केसी की गतिविधियों की जांच को मंजूरी दे दी लेकिन कुछ प्रक्रियात्मक समस्याओं के कारण इसे रद्द कर दिया गया। हालांकि 24 नवंबर, 1992 को एसोसिएटेड प्रेस ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की कि जांचकर्ताओं ने पाया था कि 'विलियम केसी ने बंधकों की रिहाई के लिए शायद अनौपचारिक, गुप्त और संभावित खतरनाक प्रयास किए।'

    पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने 18 फरवरी, 2023 को घोषणा की कि वे अस्पताल में भर्ती होने के बजाय अपने घर पर आखिरी सांस लेंगे। 99 वर्षीय कार्टर ने 2015 में मस्तिष्क कैंसर के लिए कीमोथेरिपी शुरू की थी तो उन्होंने मीडिया से कहा था- 'मैं चाहता हूं कि अंतिम गिनी कीड़ा (चूहे की तरह कुतरने वाला कीड़ा) मेरी मृत्यु से पहले मर जाए।' कार्टर अब बहुत खुश होंगे क्योंकि जब उन्होंने 1986 में ग्रामीण अफ्रीका में कार्टर ग्लोबल सेंटर फॉर गिनी वर्म उन्मूलन कार्यक्रम की स्थापना की थी उसके बाद से गिनी रोगियों का प्रमाण 33 लाख से घटकर 2022 में 13 हो गया है।

    पूर्व राष्ट्रपति का भारत के साथ विशेष संबंध है। उनकी मां लिलियन कार्टर ने 68 वर्ष की आयु में 1966 में गोदरेज नगर, विक्रोली (मुंबई) के एक क्लिनिक में लगभग 2 वर्षों तक 'पीस कॉर्प्स नर्स' के रूप में काम किया था। जिमी कार्टर ने बाद में कहा था कि उनकी मां 1968 में 'भारत में अपने दिल का एक बड़ा हिस्सा छोड़कर घर लौटी थीं।' 1977 में कार्टर ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के अंतिम संस्कार के लिए नई दिल्ली में प्रतिनिधि मंडल के हिस्से के रूप में अपनी मां को फिर से बॉम्बे (अब मुंबई) भेजा। दर्जनों बच्चों ने, जिन्हें उन्होंने शिशुओं की तरह पाला था, विक्रोली में उनका अभिवादन कर रहे थे, उन्हें गेंदे के फूलों की माला पहना रहे थे और उनके माथे पर गुलाल लगा रहे थे।

    1978 में जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री थे तब कार्टर की भारत की आधिकारिक यात्रा के दौरान भारत की परमाणु नीति को लेकर कुछ तनावपूर्ण माहौल था। हालांकि इस यात्रा को आधिकारिक तौर पर 'महान राजनयिक सफलता' के रूप में वर्णित किया गया था। यह तनावपूर्ण क्षण वार्ता के बाद आया। उस समय कार्टर को पता नहीं था कि माइक्रोफोन अभी भी चालू है। उन्होंने अपने विदेश मंत्री साइरस वेंस से कहा कि परमाणु सुरक्षा उपायों के विषय पर प्रधानमंत्री देसाई को एक 'भावना रहित और बहुत स्पष्ट' पत्र लिखा जाना चाहिए। यह बात अमेरिकी समाचार चैनलों के समाचार टेप में चली गई थी जिसकी वजह से वार्ता की विफलता का संकेत दिया गया था। अपने स्वभाव के अनुरूप कार्टर ने राजकीय रात्रि भोज में इस घटना का मज़ाकिया तौर पर उल्लेख किया।

    जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल के दौरान 2008 के भारत-अमेरिका परमाणु समझौते का विरोध करते समय उन्होंने यही स्पष्टता दिखाई थी। इंटरनेशनल हेराल्ड ट्रिब्यून में 11 सितंबर, 2008 को उन्होंने एक लेख लिखा था, जिसका शीर्षक था-'भारत ने 1978 के परमाणु अप्रसार अधिनियम पर हस्ताक्षर न कर दुनिया को खतरे में डाल दिया।' 1978 के परमाणु अप्रसार अधिनियम को उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस में द्विदलीय प्रयासों के माध्यम से शुरू किया था। उनकी शिकायत थी कि भारत केवल निजी तौर पर अमेरिका को सुरक्षा उपायों के बारे में आश्वासन दे रहा है लेकिन सार्वजनिक रूप से ऐसा नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा, 'मैंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ इन परस्पर विरोधी दावों पर चर्चा की और मनमोहन सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा था कि अमेरिका और भारतीय राजनीति अलग-अलग है।'

    सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने कार्टर सेंटर स्थापित किया था जिसने 1989-2018 के दौरान 14 देशों में विवादों को समाप्त करने के लिए प्रयास किए। इसके अलावा सेंटर ने अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में 113 चुनाव निरीक्षण मिशन भी तैनात किए थे। किसी भी अन्य अमेरिकी राष्ट्रपति की तुलना में कार्टर ने मानवाधिकारों को अमेरिकी सरकार की आंतरिक और बाहरी नीति का शीट एंकर बनाया था। यह नीति अभी भी कायम है।कार्टर एक सफल लेखक भी हैं और उन्होंने 32 पुस्तकें लिखी हैं। हालांकि यह दुखद है कि कार्टर द्वारा 'जीवन के अंत' के उद्देश्य से उपचार बंद करने की घोषणा के 10 दिनों के भीतर एक विवाद पैदा हो गया कि वे ईरान में रखे गए अमेरिकी बंधकों को मुक्त कराने में चूक गए थे। 4 नवंबर, 1979 को सेना से संबंध रखने वाले ईरानी छात्रों के एक समूह ने 52 अमेरिकी राजनयिकों और नागरिकों को बंधक बना लिया। ये 52 लोग 444 दिनों तक बंधक रहे। रोनाल्ड रीगन के राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभालने के कुछ घंटों के भीतर ही इन लोगों को 20 जनवरी, 1981 को रिहा किया गया। बंधक संकट के कारण कार्टर को राष्ट्रपति का चुनाव दोबारा लड़ने का अवसर नहीं मिला।

    27 फरवरी को इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एक्यूरेसी (यूएसए) ने आरोप लगाया कि राष्ट्रपति कार्टर ने बंधक मामले में मध्यस्थता करने के दौरान (1973-79) साउथ डकोटा के पूर्व सीनेटर रहे जेम्स अबोरेज़्क की पेशकश को ठुकरा दिया था। अबोरेज़्क का 24 फरवरी, 2023 को निधन हो गया। अबोरेज़्क एक फिलिस्तीनी ईसाई थे जो सीनेट से अपनी सेवानिवृत्ति के बाद ईरान के लिए 'जनरल काउंसल' के रूप में काम कर रहे थे। उन्होंने दावा किया था कि छात्रों द्वारा अमेरिकी दूतावास पर कब्जे के 2 सप्ताह बाद उन्होंने तेहरान की यात्रा की थी और उस समय ईरानी क्रांतिकारी परिषद के अध्यक्ष रहे बानीसद्र के साथ 'एक सौदा किया था'


    हालांकि इस सौदेबाजी से कार्टर प्रशासन सहमत नहीं था। अबोरेज़्क ने कहा था कि अमेरिकी बंधकों की रिहाई में 20 जनवरी, 1981 तक की देरी करके कार्टर ने फिर से चुनाव जीतने की अपनी संभावनाओं को कम कर दिया था। 'इसके बजाय, रोनाल्ड रीगन के पदभार संभालने के कुछ मिनट बाद बंधकों को रिहा कर दिया जाएगा।' यदि आरोप सही है तो यह आरोप एक नैतिक राष्ट्रपति के रूप में कार्टर की साख को साबित करेगा जो अंडरहैंड डीलिंग करके चुनाव जीतना नहीं चाहता था।

    न्यूयॉर्क टाइम्स ने 15 अप्रैल, 1991 को गैरी सिक का एक लेख प्रकाशित किया था कि दिसंबर 1979-जनवरी 1980 में साइरस और जमशीद हाशमी नामक दो संदिग्ध ईरानी हथियार डीलर भाइयों ने ईरानी राष्ट्रपति के चुनावों में अपने उम्मीदवार के लिए अमेरिकी समर्थन प्राप्त करने के लिए कार्टर प्रशासन से संपर्क किया था। हालांकि यह डील नहीं हो सकी थी। इन दोनों भाइयों के ईरानी क्रांतिकारी सरकार के साथ अच्छे संपर्क थे। गैरी सिक ने कार्टर की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (1976-1981) में काम किया था।

    हालांकि रोनाल्ड रीगन के चुनाव अभियान के प्रबंधक तथा बाद में सीआईए के निदेशक बने विलियम केसी ने मार्च, 1980 में कार्टर प्रशासन के दौरान बंधकों को रिहा होने से रोकने के लिए मेफ्लॉवर होटल, वाशिंगटन डीसी में जमशीद हाशमी से मुलाकात की ताकि कार्टर को 1981 के चुनावों में राजनीतिक लाभ न मिले। केसी ने एक बगावती अमेरिकी खुफिया अधिकारी के माध्यम से जुलाई 1980 में मैड्रिड में मेहदी कर्रुबी से मुलाकात की और उनके बीच एक समझौता हुआ कि रीगन के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद ही बंधकों को रिहा किया जाएगा। समझौते में यह तय किया गया कि राष्ट्रपति बनने के बाद रीगन राष्ट्रपति कार्टर द्वारा जब्त की गई लाखों डॉलर की ईरानी संपत्ति से जब्ती हटा लेंगे। कर्रुबी बाद में ईरानी संसद के अध्यक्ष बने।

    गैरी सिक ने कहा कि यह कुख्यात 'ईरान-कॉन्ट्रा' घोटाले की शुरुआत थी जो 1986 में सुर्खियों में आया। इस घोटाले में शामिल रीगन प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों को 1992 में सजा सुनाई गई थी। केसी की मई, 1987 में कैंसर से मृत्यु हो गई।

    1991 में सीनेट की विदेश संबंध समिति ने केसी की गतिविधियों की जांच को मंजूरी दे दी लेकिन कुछ प्रक्रियात्मक समस्याओं के कारण इसे रद्द कर दिया गया। हालांकि 24 नवंबर, 1992 को एसोसिएटेड प्रेस ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की कि जांचकर्ताओं ने पाया था कि 'विलियम केसी ने बंधकों की रिहाई के लिए शायद अनौपचारिक, गुप्त और संभावित खतरनाक प्रयास किए।'

    1992 में प्रतिनिधि सभा ने इन घटनाओं की जांच के लिए एक 'टास्क फोर्स' का गठन किया। जनवरी, 1993 में टास्क फोर्स के अध्यक्ष ली हैमिल्टन ने सदन को बताया कि इन घटनाओं के बारे में कोई विश्वसनीय सबूत नहीं थे। हालांकि टास्क फोर्स के एक सदस्य मर्विन डिमैली ने अंतिम रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। इस मामले में रहस्य अभी भी कायम है।

    जो भी हो, राष्ट्रीय हो या अंतरराष्ट्रीय- वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में जिमी कार्टर की मूल्यगत राजनीति बरबस याद आ जाती है।
    (लेखक कैबिनेट सचिवालय के पूर्व विशेष सचिव हैं। सिंडिकेट: दी बिलियन प्रेस)

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